कहा जाता है कि ये प्राचीन शेषनाग झील 250 फीट से भी ज्यादा गहरी है. झील को लेकर मान्यता है कि इसमें शेषनाग खुद निवास करते हैं.
यही वजह है कि इस झील में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देकी जाती है. बताया जाता है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को 24 घंटों में एक बार शेषनाग के दर्शन भी होते हैं.
इतना ही नहीं इस झील में शेषनाग की आकृति भी नजर आती है. जोकि पानी के उभरकर आती है.
पौराणिक कथा की मानें तो इस झील का इतिहास भगवान शिव औऱ मां पार्वती से जुड़ा है.
दऱअसल एक बार जह भगवान शिव मां पार्वती को अमर कथा सुनाने के लिए अमरनाथ ले जा रहे थे, तो भगवान शिव ये चाहते थे कि उनकी अमर कथा किसी को ना सुनाई दे, क्योंकि इस कथा को जो भी सुनेगा वो अमर हो जाएगा.
इसी के चलते भगवान शिव ने अनंत सांपों - नागों को अनंतनाग में और बैल नंदी को पहलगाम में और चंद्रमा को चंदनवाड़ी में ही छोड़ दिया था. बताया जाता है कि उनके साथ सिर्फ शेषनाग ही गए थे.
इसके अलावा एक मान्यता ये भी है कि शेषनाग ने खुद इस जगह को खोदा और इस झील में रहने लगे.
इसके अलावा यहां के स्थानीय निवासियों का कहना है कि शेषनाग आज भी यहां रहते हैं और आज भी इस झील को कोई पार नहीं कर सकता.