आमेर या अम्बर किले का नाम माँ अम्बा देवी के नाम पर रखा गया है। यहां रहने वाले मीनाओं की मां दुर्गा में गहरी आस्था थी और उन्हीं के नाम पर उन्होंने इस किले का नाम रखा। एक अन्य किंवदंती यह है कि इस किले का नाम अंबिकेश्वर, जो भगवान शिव का एक रूप है, के नाम पर पड़ा।
इस किले में एक तरफ बड़े-बड़े गलियारे नजर आते हैं तो दूसरी तरफ संकरी गलियां भी हैं। यह मुगल और राजपूत वास्तुकला का एक अनूठा उदाहरण है। आमेर किले के ठीक सामने बनी झील इस किले की खूबसूरती को और भी बढ़ा देती है।
आमेर किले का निर्माण 16वीं शताब्दी में राजा मान सिंह के समय शुरू हुआ था, लेकिन इसका निर्माण कार्य राजा सवाई जय सिंह द्वितीय और राजा जय सिंह प्रथम के समय में भी जारी रहा। इसका वर्तमान स्वरूप.
इन राजाओं ने इस किले की वास्तुकला पर विशेष ध्यान दिया, इसीलिए इसे बनकर तैयार होने में काफी वक्त लगा। राजा मान सिंह से राजा सवाई जय सिंह द्वितीय और राजा जय सिंह तक के शासन काल में 100 साल का समय बीत गया।
शिला देवी मंदिर किले में स्थित है। इस मंदिर के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। ऐसा माना जाता है कि राजा मान सिंह के सपने में माँ काली प्रकट हुईं और उनसे जेसोर (बांग्लादेश के पास स्थित एक स्थान) के पास उनकी मूर्ति खोजने को कहा।
राजा मान सिंह ने माता की आज्ञा का पालन किया, लेकिन उन्हें वहां माता की मूर्ति न मिल कर एक बड़ा पत्थर मिला। मां शिला देवी की मूर्ति ढूंढने के लिए इस पत्थर को साफ किया गया और इस तरह यहां शिला देवी का मंदिर बनाया गया। आज भी इस मंदिर के प्रति भक्तों की गहरी आस्था है।
किले के भीतर की यह सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। इस भवन की विशेषता यह है कि यहां शीशे इस तरह से लगाए गए हैं कि इसमें लाइट जलाने पर पूरा भवन जगमगा उठता है।
यह जगह बॉलीवुड निर्देशकों की पसंदीदा रही है। दिलीप कुमार और मधुबाला की फिल्म 'मुगल-ए-आजम' का गाना 'प्यार किया तो डरना क्या' यहीं शूट किया गया था।
आमेर के किले का रहस्य, इतिहास और घूमने की जानकारी