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नाहरगढ़ किला राजस्थान राज्य की राजधानी गुलावी शहर जयपुर की शान है। जयपुर के इतिहास में यह किला अहम स्थान रखता है। अरावली पर्वतमाला के पहाड़ी पर अवस्थित यह किला आमेर राजा की राजधानी हुआ करती थी।

भगवान श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र के नाम पर ही इस किले का नाम सुदर्शनगढ़ रखा गया। बाद में कुछ घटनाओं के कारण इसका नाम बदलकार नहारसिंह भोमया के नाम पर नाहरगढ़ पड़ा। 

जयपुर शहर से करीब 15 किमी दूर उत्तर अरावली पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस किले का निर्माण मराठों से आमेर की सुरक्षा हेतु बनवाया गया था। 

नाहर का अर्थ शेर से भी लगाया जाता है। कहा जाता है की इस क्षेत्र में शेर की अधिकता के कारण ही इस किले को नाहरगढ़ रखा गया।  

जयपुर का यह किला चारों तरफ ऊँची अभेद दीवार से घिरा होने का कारण सबसे सुरक्षित किला माना जाता था। यही कारण रहा है की इस किले पर कोई भी शासक कभी आक्रमण नहीं किया। 

यह महल नाहरगढ़ के नौ महल के नाम जाना जाता है। महल के आलीशान द्वार, खिड़कियों और दीवार भित्तिचित्रों से सजे हैं। अतीत की यादों को समेटे यह किला वर्षों से शान के साथ खड़ा है।

कहा जाता है की जब इस किले का पुनर्निर्माण हो रहा था। तब एक दिन में जितना निर्माण कार्य होता था अगले दिन सब कुछ घवस्त मिलता है। अगले दिन नए सिरे से काम की शरुआत करनी पड़ती है।

कहते हैं की राजस्थान के इस किले में भूतों का बसेर हो गया था। कहा जाता था की वहाँ किसी ‘आत्मा का खौफ’ है। आत्मा के खौफ के डर से मजदूर भी भाग जाते था। कहा जाता है की इस स्थल पर नाहर सिंह भोमिया की आत्मा भटकती थी। जिस कारण से निर्माणकार्य में बार-बार बाधा उत्पन्न हो रही थी। फलतः नाहर सिंह भोमिया की स्मृति में वहाँ उनका एक स्थल बनाया गया। इस प्रकार इस किले को उनके ही नाम पर नाहरगढ़ दुर्ग रखा गया।

जैसा की हम जानते हैं की इस किले को सवाई राजा मान सिंह ने 1734 में बनवाया था। लेकिन दशक बाद इस किले को भूतिया किला कहा जाने लगा। लोगों का मानना था की राजा का भूत वास करता है। हालांकि इस किले में रात में रुकना मना है।

किले के सबसे खूबसूरत महल,माधवेन्द्र महल के ठीक सामने बनी बावड़ी पर्यटक को बेहद आकर्षित करती है। इसके अलावा किले के अंदर स्थित हवा मंदिर, महाराज माधों सिंह का अतिथि गृह सहित कई अन्य स्थान भी दर्शनीय हैं। 

नाहरगढ़ किले के इतिहास, वास्तुकला और घूमने की जानकारी