Eklingeshwar Mahadev Temple Jaipur In Hindi:- राजस्थान का गुलाबी शहर यानी जयपुर अपने किलों और महलों के लिए मशहूर है। लेकिन इस शहर में ऐसे कई मंदिर हैं, जो इन किलों और महलों की नींव से भी पुराने माने जाते हैं। इसी कड़ी में एक नाम आता है एकलिंगेश्वर महादेव का। एकलिंगेश्वर महादेव का मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है और साल में केवल एक बार आम जनता के लिए खोला जाता है।
भारत में कई शिव मंदिर हैं, जहां शिव का जलाभिषेक और पूजा की जाती है। यहां लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर दर्शन करने आते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे रहस्यमयी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं।
जहां भक्तों को सिर झुकाने के लिए पूरे साल इंतजार करना पड़ता है, यानी एक ऐसा मंदिर जो साल में सिर्फ एक बार खुलता है। यह रहस्यमयी मंदिर राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर के मोती डूंगरी में स्थित है, इस मंदिर को Ekalingeshwar Mahadev Mandir के नाम से जाना जाता है। इसके साथ ही इसे शंकर गढ़ी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
Eklingeshwar Mahadev Temple Jaipur In Hindi – एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर जयपुर हिंदी में
बिड़ला मंदिर के पीछे मोती डूंगरी पर अपने गौरवशाली इतिहास को गौरवान्वित करने वाले शिव मंदिर शंकर गढ़ी के कपाट खुलने का भक्त एक साल से इंतजार करते हैं। मंदिर के दरवाजे आम जनता के लिए केवल महाशिवरात्रि पर खुलते हैं। मोती डूंगरी किले के अंदर Eklingeshwar Mahadev Temple बेहद चमत्कारी माना जाता है। इस मंदिर के पुजारी ने बताया कि इसकी स्थापना बहुत पुरानी है. इसका निर्माण जयपुर की स्थापना से भी पहले हुआ था। मंदिर में भोलेनाथ ही शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं।
जयपुर के मोती डूंगरी का Eklingeshwar Mahadev Mandir और चांदनी चौक का राज- राजेश्वर मंदिर एकमात्र ऐसे दो मंदिर हैं जो सालभर में एकबार ही खुलते है.
शिव भक्त साल भर एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर के खुलने का इंतजार करते हैं और शिवरात्रि के दिन एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगती है और लोग घंटों इंतजार के बाद यहां दर्शन करते हैं। वहीं शिवरात्रि के दिन मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है, जो भक्तों का मन मोह लेता है. इस मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को एक किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है।
शिवरात्रि पर सबसे पहले जयपुर के राजघराने के द्वारा की जाती है पूजा
Eklingeshwar Mahadev की पूजा सबसे पहले शिवरात्रि पर जयपुर के राजपरिवार द्वारा की जाती है। पूर्व राजमाता गायत्री देवी जब तक जीवित रहीं, तब तक वे सबसे पहले इसी मंदिर में शिवलिंग का अभिषेक करती थीं और तब जयपुर शहर के साथ-साथ दूर-दूर से श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते थे। यह मंदिर आज भी राजपरिवार के अधिकार क्षेत्र में माना जाता है।
यह भी कहा जाता है कि पहले यहां शिव के साथ शिव परिवार की भी स्थापना की गई थी, लेकिन कुछ समय बाद उनकी मूर्तियां गायब हो गईं। इसके बाद फिर से शिव परिवार की स्थापना हुई, लेकिन एक बार फिर शिव परिवार अदृश्य हो गया। इस घटना के बाद किसी ने दोबारा मूर्तियां स्थापित करने की हिम्मत नहीं की। यहां राजपरिवार द्वारा श्रावण में पूजा-अर्चना की जाती थी और रुद्राभिषेक सहस्रघट का आयोजन किया जाता था।
राजा-महाराजा यहां भगवान के दर्शन के लिए आते थे और मंदिर का खर्च शाही परिवार द्वारा वहन किया जाता था। चूँकि यह मंदिर साल में केवल एक बार खुलता है इसलिए शिवरात्रि के दिन भक्तों में इसके प्रति विशेष आकर्षण रहता है। यहां भगवान के दर्शन के लिए लोग करीब एक किलोमीटर की पहाड़ी पर चढ़कर कई घंटों तक लाइन में खड़े रहते हैं।
एकलिंगेश्वर मंदिर का पता – Ekalingeshwar Temple Address
एकलिंगेश्वर मंदिर जयपुर के मोती डूंगरी क्षेत्र में स्थित है। इसे शंकर गढ़ी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर जेडीए कार्यालय के सामने स्थित पहाड़ी की चोटी पर बना है। इस पहाड़ी के नीचे सड़क से सटा हुआ एक सुन्दर बिड़ला मंदिर है। अगर आप दिन के किसी भी समय इस जगह से गुजरेंगे तो यहां का खूबसूरत नजारा आपका दिल जीत लेगा। शाम के समय यहां का नजारा और भी मनोरम होता है।
भगवान शिव की उत्पत्ति कैसे हुई
ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव स्वयंभू हैं यानी वे स्वयं प्रकट हुए हैं, लेकिन उनकी उत्पत्ति का विवरण पुराणों में मिलता है। विष्णु पुराण के अनुसार जहां भगवान विष्णु भगवान ब्रह्मा की नाभि से उत्पन्न हुए थे। उसी समय भगवान विष्णु के माथे के तेज से भगवान शिव का जन्म हुआ। विष्णु पुराण के अनुसार शिव और शंभू अपने माथे के तेज के कारण ही सदैव योगमुद्रा में रहते हैं। वहीं भगवान शिव से जुड़ी एक और मान्यता यह है कि नंदी और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं और रुद्रदेवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।
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